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संयुक्त व्यंजन — जब दो व्यंजनों के मध्य कोई स्वर न हो और उच्चारण किया जाए तब ऐसे व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं अर्थात दो व्यंजनों के बीच में कोई स्वर न होकर जो उच्चारण निकलता है वह उच्चारण संयुक्त व्यंजन होता है। संयुक्त व्यंजन में पहला व्यंजन आधा व दूसरा व्यंजन पूरा उच्चारित होता है। हिन्दी की वर्णमाला में सम्मिलित चार संयुक्त व्यंजन वर्ण हैं— त्र, ज्ञ, क्ष, श्र। इसके अलावा जहाॅं कहीं भी जब दो व्यंजन वर्ण निकट आकर उच्चारित होते हैं वे भी संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। यथा— क्त — भक्त, प्र — प्रश्न, ल्ल — मल्लिका, स्थ — स्थल, द्व — द्वार, द्य — विद्यालय आदि।
सबसे अधिक शब्द ऐसे हैं जिनमें य या व का संयोग होता है। देखिए आगे लिपि और वर्तनी के अन्तर्गत भी।
१. संयुक्त व्यंजन के संयोग में य दूसरा व्यंजन होता है—
यथा– (अ) संस्कृत भाषा के संयुक्त शब्द– अंत्याक्षरी, आर्य, उद्देश्य, उपलक्ष्य, कार्य, काव्य, कृत्य, ख्याति, क्षम्य, ग्राह्य, चर्या, ज्योति, ज्योतिष, तालव्य, त्याज्य, दृश्य, द्रव्य, दैत्य, धान्य, धैर्य, ध्यान, न्याय, नासिवय, प्राप्य, पुण्य, मौर्य, मान्य, राज्य, व्यतीत, व्यापार, श्याम, शौर्य, स्वास्थ्य, हास्य।
(ब) हिन्दी भाषा के संयुक्त शब्द– क्या, क्यारी, क्यों, ग्यारह, ज्यादा, ज्यों-ज्यों, प्यारा, प्यास, त्योहार, म्यान।
२. संयुक्त व्यंजन के संयोग में र पहला व्यंजन भी हो सकता है, दूसरा भी—
यथा– (अ) संयोग में र पहला व्यंजन — आदर्श, असमर्थ, आशीर्वाद, आचार्य, कार्य, दुर्गति, दुर्दशा, पूर्ण, मर्यादा, मूर्ख, स्वर्ग, तर्क, वर्ग, मुर्गी, दीर्घ, चर्चा, कर्तव्य, निर्धन।
(ब) संयोग में र दूसरा व्यंजन — उग्र, क्रम, क्रिया, क्रोध, ग्रन्थ, ग्राम, ग्रहण, चक्र, चन्द्र, ट्राम, ड्रामा, त्रास, दरिद्र, द्रोह, नम्र, नेत्र, प्रसाद, प्रेंम, प्रणाम, प्रेरणा, भ्रम, सहस्र, स्रोत, ह्रस्व।
टीप– नरक, परन्तु, परमाणु, परीक्षा, परमात्मा, स्मरण में र संयुक्त नहीं है, पूर्णतया (अलग) है।
३. संयुक्त व्यंजनों में ल और व के संयोगवाले शब्द अपेक्षाकृत कम हैं—
यथा– (अ) ल के संयोगवाले शब्द— अल्प, उल्का, तुल्य, मूल्य, बिल्व, वल्कल, शिल्प, शुल्क, तथा क्लेश, ग्लानि, म्लेच्छ, श्लोक, शुक्ल।
(ब) व के संयोगवाले शब्द— ज्वर, ज्वाला, क्वार्टर, ग्वाला, त्वचा, द्वारा, द्वन्द्व, द्वीप, द्वेष, ध्वंस, विश्व, बिह्वल, श्वेत, स्वभाव; तथा काव्य, तीव्र, व्यक्ति, व्याकुल, व्यवहार, व्यापार, व्यवस्था।
५. क्ष संयुक्त व्यंजन— क्ष संयुक्त व्यंजन है जिसमें क् ष का संयोग है और यही इसका उच्चारण भी है, छ नहीं। क्ष केवल संस्कृत के शब्दों में आता है।
यथा– क्षण, क्षति, क्षत्रिय, क्षमा, क्षीण, क्षेत्र, अक्षय, क्षोभ, कक्ष, कक्षा, दीक्षा, तीक्ष्ण, दुर्भिक्ष, नक्षत्र, प्रतीक्षा, प्रत्यक्ष, भिक्षा, पक्ष, विपक्ष, वृक्ष, वक्ष, रक्षा, शिक्षा, समीक्षा, साक्षी।
६. ज्ञ संयुक्त व्यंजन— ज्ञ के अनेक उच्चारण हैं। उत्तरी भारत में ग्यँ बोलते हैं। यह बहुत ही थोड़े संस्कृत के शब्दों में प्रयुक्त होता है, जैसे – अभिज्ञ, अल्पज्ञ, आज्ञा, अज्ञान, कृतज्ञ, जिज्ञासा, ज्ञान, यज्ञ, विज्ञान, संज्ञा।
७. ष्ट और ष्ठ का उच्चारण — ष्ट और ष्ठ के उच्चारणों में स्पष्टता न होने के कारण बहुत सी भूलें हो जाती हैं।
याद रखें–
(अ) ष्ट के उच्चारण— अभीष्ट, अष्टभुज, इष्ट, कष्ट, चेष्टा, तुष्ट, दुष्ट, दृष्ट, नष्ट, पुष्ट, भ्रष्ट, यथेष्ट, रुष्ट, शिष्ट, सृष्टि, स्पष्ट, हृष्टपुष्ट।
(ब) ष्ठ के उच्चारण— अनुष्ठान, ओष्ठ, कनिष्ठ, गोष्ठी, ज्येष्ठ, घनिष्ठ, निष्ठा, प्रतिष्ठा, बलिष्ठ, वरिष्ठ, श्रेष्ठ।
८. अन्य संयोग— आत्मा, अक्ल, आश्चर्य, आवश्यकता, आह्लाद, आह्वान, आस्तीन, इस्पात, इन्कार, ईस्वी, उद्भव, उच्छृङ्खल उद्घाटन, कृतघ्न, गृहस्थ, जन्म, त्रुटि, तात्पर्य, दोस्ती, निश्चय, पंक्ति, पत्नी, भक्त, श्मशान, स्थान, स्थूल, राष्ट्र, ईर्ष्या, लक्ष्मी, स्त्री, सामर्थ्य, निष्क्रिय और ज्योत्स्ना में दो से अधिक व्यंजन जुड़े हुए हैं।
९. ङ, ञ, ष और ह को छोड़ सब अल्पप्राण व्यंजनों का द्वित्व हो सकता है।
यथा— पक्का, सुग्गा, कच्चा, सजी, गिट्टी, लड्डु, पत्ता, रद्दी, अक्षुण्ण, पन्ना, गप्पी, धब्बा, अम्मा, तय्यार, बर्रे, बिल्ली, कव्वा, दुश्शासन, रस्सी।
१०. महाप्राण व्यंजनों के द्वित्व में पहला अल्पप्राण और दूसरा महाप्राण लिखा जाता है।
यथा— मक्खन, बग्घी, अच्छा, झज्झर, पुट्ठा, बुड्ढा, मत्था, बुद्धि, बादि।
टीप– दो महाप्राण व्यंजन संयुक्त नहीं हो सकते। असंयुक्त और संयुक्त (द्वित्व ) व्यंजन से अर्थभेद हो जाता है।
यथा ― पता – पत्ता; बली – बल्ली; कथा - कत्था।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
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