व्याक्रियते भाषा अनेन इति व्यकरणम्। जिस विद्या से भाषा की व्या-क्रिया अर्थात उसका विश्लेषण होता है, उसे व्याकरण कहते हैं। आप और हम जो कुछ कहना चाहते हैं, वह पूरी बात भाषा है। भाषा का मुख्य अंग वाक्य है, और किसी बात में कई वाक्य हो सकते हैं। वाक्य का विश्लेषण किया जाता है तो उसमें कई पद और शब्द मिलते हैं। अक्षरों और अक्षर ध्वनियों से शब्द बनते हैं। उदाहरण के लिए कोई बात कहें —
जैसे — 1. एक औरत सड़क में जा रही है।
2. वह कहाँ जा रही है?
3. उसके हाथ में गिलास है।
4. गिलास खाली है।
5. औरत गिलास में दूध भरकर लाएगी और अपनी बच्चे को पिलाएगी।
उक्त पाॅंच वाक्य हैं। वाक्य कई प्रकार के हैं। प्रत्येक वाक्य की एक निश्चित बनावट है। हिन्दी वाक्यों में कर्ता पहले और क्रिया अंत में रहती है। कुछ पदों में परिवर्तन होता है, कुछ में नहीं। प्रत्येक पद का वाक्य में अपना विशिष्ट स्थान होता है। व्याकरण का यह एक अंग है जिसे वाक्य विचार कहते हैं। इसमें वाक्य के भेद, वाक्य गठन, पदों का परस्पर सम्बन्ध और पदों का क्रम जाना जाता है।
ऊपर के पाँच वाक्यों में शब्दों को देखें तो इनमें कुछ नाम हैं तो कुछ क्रियाएँ हैं। औरत, सड़क का अलग रूप है तो गिलास का कुछ और है। गिलास से तीसरे वाक्य में गिलास का रूप बना है। लाना से लाएगी, और पिलाना से पिलाएगी रूप बन गये हैं। कुछ शब्द पुल्लिङ्ग हैं, कुछ स्त्रीलिङ्ग। कहीं में लगा है, कहीं को का प्रयोग हुआ है। कुछ शब्द अपना रूप कभी बदलते ही नहीं हैं जैसे— और, अतः, तथा, भी आदि।
शब्दों के रूप कैसे बनते हैं, रूप परिवर्तन या रचना के अनुसार उसके क्या-क्या भेद हैं, वाक्य में शब्दों का क्या कार्य होता है? व्याकरण के इस अंग को रूप-विचार या पद-विचार कहते हैं। पद का अर्थ है रूपयुक्त शब्द जैसे— लड़का, लड़के, लड़की, लड़कियाँ, लड़कियों, लड़कों इसी तरह जा, जाइए, जाओगे, जाना आदि। ये सभी पद हैं।
हिन्दी भाषा का शब्द भंडार कई तत्त्वों से बनता है। इसमें संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के शब्द भी हैं। हिन्दी अपने ढंग से अथवा संस्कृत के ढंग से शब्दों को बनाती रहती है। यह सारा विषय शब्द-विचार कहलाता है। इसमें शब्दों की उत्पत्ति, विकास, निर्माण, अर्थ आदि पर विचार किया जाता है। अब इन वाक्यों के शब्दों का विश्लेषण करें। इनमें कई वर्ण हैं। इनका वर्गीकरण किया जा सकता है— कुछ सीधे लिखे हैं, कुछ टेढ़े, कुछ होंठों से बोले जाते हैं जैसे– म। कुछ कंठ से बोले जाते हैं— जैसे– ख, ग। कुछ का स्थान आदि दूसरे से भिन्न है। इन वर्णों के बोलने का अपना-अपना ढंग है। भरकर को हम भ रकर नहीं बोलते, न ही भरक र, इसे हम भर कर बोलते हैं । यह सारा ज्ञान व्याकरण का तीसरा अंग, वर्ण-विचार, कहलाता है, अर्थात् वर्णों के आकार, उच्चारण और उनके मेल से शब्द निर्माण का अध्ययन वर्ण-विचार का विषय है।
व्याकरण किसी भाषा के बोलने या लिखने की रीति बताता है। वर्णों या अक्षरों के जोड़ से शब्द कैसे बनते हैं, शब्द कैसे जुड़कर वाक्य बनाते हैं और वाक्य किस तरह भाषा का निर्माण करते हैं, वर्णों, शब्दों और वाक्यों का क्या रूप और क्या प्रयोग है, इन तत्वों का निरीक्षण करके जो शास्त्र किसी भाषा के नियम निर्धारित करता है, वह उस भाषा का व्याकरण होता है। व्याकरण उस भाषा की नियमावली होती है। व्याकरण का महत्व या लाभ यही है कि हम उसके द्वारा निर्धारित इन नियमों का अध्ययन करके शुद्ध, शिष्ट, सामान्य भाषा सीखते हैं।
आर. एफ. टेमरे
शिक्षक
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
infosrf
R. F. Temre (Teacher)