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भाषा का स्वरूप (भाषा ज्ञान)


Text ID: 31
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भाषा – जैसा कि हमें ज्ञात है भाषा प्राणियों के विचारों या भावों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम है। इसका प्रयोग मनुष्य के साथ-साथ अन्य जीव-जंतु भी अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए करते हैं। भाषा चाहे मनुष्य की हो या अन्य प्राणियों की, भाव प्रदर्शन करने को आधार इनके अलग-अलग हैं।

मानव भाषा के स्वरूप ―

मानव की भाषा के 3 स्वरूप हैं।

1.  वाचिक या मौखिक भाषा

2.  लिखित भाषा

3. संकेतिक भाषा

1.  वाचिक या मौखिक भाषा ― वाचिक या मौखिक भाषा वह होती है जिसमें मनुष्य बोलकर एवं सुनकर अपने भाव का आदान-प्रदान करता है। अर्थात एक मनुष्य अपने मुख से कई तरह की ध्वनियाँ निकाल कर दूसरों को अपने भाव समझाने का प्रयास करता है। वही दूसरा व्यक्ति उन भिन्न-भिन्न तरह की ध्वनियों को सुनकर उनके अर्थ को समझता है। इस तरह बोलकर एवं सुनकर भाव का आदान प्रदान की जाने वाली भाषा को वाचिक या मौखिक भाषा कहा जाता है। विश्व में मानव समुदाय के द्वारा भाषा के इसी स्वरूप का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।

2. लिखित भाषा ― मनुष्य इस धरती का सबसे समझदार प्राणी है, जिसने अपने भावों को कुछ संकेत बनाकर उनके माध्यम से अपने भावों एवं ज्ञान को संजोने (स्थायी करने) के लिए भाषा के इस स्वरूप को विकसित किया है, जिसे लिखित भाषा कहा जाता है। आज हमारे समक्ष ढेर सारा साहित्य, विज्ञान-गणित की बातें हैं, जिन्हें विद्यार्थी पढ़-समझकर अपनी रूचि के अनुसार भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के ज्ञान को प्राप्त करते हैं और उसी प्राप्त ज्ञान में परिवर्धन कर उसे संजोने के लिए इसी भाषा के लिखित स्वरूप का प्रयोग करते हैं। ज्ञान का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरण करने में इसी लिखित भाषा का सबसे अधिक योगदान है।

3. संकेतिक भाषा ― इस भाषा में मनुष्य अपने शारीरिक अंग-प्रत्यंगों जैसे– हाथ, पैर, सिर, आँखें इत्यादि के द्वारा इशारों या संकेतों के माध्यम से अपने भावों को दूसरों तक प्रेषित करने का कार्य करते हैं। संकेतों (इशारों) के प्रयुक्त होने के कारण इस भाषा को सांकेतिक भाषा कहा जाता है। इस भाषा के अच्छी तरह से परिमार्जन एवं विकास होने के कारण यह मूक बधिर लोगों के लिए यह वरदान सिद्ध हुई है।

जानवरों की भाषा के स्वरूप ―

जानवरों की भाषा के केवल दो ही स्वरूप है ―

1. वाचिक (ध्वन्यात्मक) भाषा रूप

2. सांकेतिक भाषा रूप

जानवरों का मस्तिष्क इतना तू विकसित नहीं है कि वे लिखित भाषा रुप का प्रयोग कर पाए। यह केवल उक्त दो स्वरूपों का ही प्रयोग अपनी भावनाओं के प्रकटीकरण हेतु करते हैं।

1. वाचिक (ध्वन्यात्मक) भाषा रूप – इस भाषा में जानवर जैसे– पशु-पक्षी इत्यादि अपने मन के भावों के उद्गार हेतु तरह-तरह की ध्वनि निकालते हैं। कई बार जानवरों को खतरा महसूस होता है तब वे भिन्न-भिन्न तरह की ध्वनियाँ निकाल कर अपने साथियों को सचेत करते हैं। इसी तरह से डॉल्फिन मछली की भी अपनी एक ध्वन्यात्मक भाषा होती है।

2. सांकेतिक भाषा रूप – कई बार जानवर अपने पैरों, पंखों या नथुनों इत्यादि से सांकेतिक रूप में अपने भावों को प्रकट करते हैं। कुछ जानवर अपने लंबे-लंबे दांतों को दिखा कर दूसरों को डराने का प्रयास करते हैं। कई  पक्षी अपने मादा साथी को रिझाने के लिए तरह-तरह के हाव भाव प्रकट करते हैं जैसे– नर मोर पंखों को फैलाकर सुन्दरता का प्रदर्शन करता है। बन्दर अपने दाँत दिखाकर डराने का प्रयास करता है।

इस तरह मनुष्य के समान जानवरों की भी अपनी भाषाएँ होती हैं। ऊपर हमने मनुष्य की भाषा के 3 स्वरूप जबकि जानवरों की भाषाओं के 2 स्वरूपों के बारे में जाना।

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
infosrf
R. F. Temre (Teacher)