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वाक्य रचना में जब वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या, चरण, क्रम, गति, यति, विराम तथा तुक आदि का नियम माना जाता है तो ऐसी रचना को छंद कहते हैं। संक्षेप में कहा जाए तो निर्धारित नियमों में बँधी हुई रचनाओं अर्थात कविता में प्रयुक्त होने वाले वर्ण, मात्रा, गति, यति, चरण आदि के संगठन को 'छंद' कहते हैं।
'छंद शास्त्र' जिसे 'पिंगल शास्त्र' भी कहते हैं। इसमें छंदों के भेद, मात्रा, वर्ण, यति, गति, चरण, गण, छंद का रस, भाव आदि से संबंधित विषयों का विवेचन किया जाता है।
छंद के भेद :– छंद के मुख्य तीन प्रकार हैं।
[1] मात्रिक छंद- जिस छंद में मात्राओं का नियमित विधान होता है उसके प्रत्येक चरण में एक तो निश्चित संख्या में मात्राएँ होती हैं उसे मात्रिक छंद कहा जाता है।
उदाहरण - दोहा, चौपाई, चौपई सोरठा, सम या तोमर, अरिल्ल, लावनी, राधिका, दिग्पाल, रोला, गीतिका, हरिगीतिका, ताटंक, वीर या आल्हा, त्रिभंगी, बरवै, उल्लाला, छप्पय, कुंडलियाँ आदि मात्रिक छंद के उदाहरण हैं।
[2] वर्णिक छंद- जिस छंद के चरणों में मात्राओं का नियम न होकर वर्णों की संख्या निश्चित हो वह छंद वर्णिक छंद कहलाता है।
उदाहरण- इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, वंशस्थ, शालिनी, उपजाति, भुजंगी, त्रोटक या तोटक, भुजंग प्रयात, मोतियदान या मौक्तिकदान, द्रुत विलम्बित, वसन्ततिलका, मालिनी, शिखरिणी, मन्दाक्रान्ता, शार्दूल विक्रीड़ित, हरिणी, वियोगिनी, सवैया (मदिरा सवैया, मालती सवैया या मत्तगयंद सवैया, दुर्मिल सवैया या चन्द्रकला), मनहर (मनहरण, घनाक्षरी या कवित्त), रूप घनाक्षरी, देव घनाक्षरी आदि वर्णिक छंद के उदाहरण हैं।
[3] लयात्मक छंद- लयात्मक छंद में न मात्राओं का नियम होता है और न ही वर्णों की संख्या समान होती है। लय के आधार पर इसे लयात्मक छंद कहा जाता है।
जयशंकर प्रसाद का यह गीत लयात्मक शब्द का उदाहरण है –
बीती विभावरी जागरी
खग कुल कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो, यह लतिका भी भर लाई
मधुमुकुल नवल रस गागरी।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
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