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मात्रा काल की दृष्टि से स्वर दो प्रकार के हैं - ह्रस्व (छोटे) या लघु और दीर्घ या गुरु (बड़े)। अ, इ, उ, ऋ हस्त्र हैं और आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, दीर्घ हैं। दीर्घ स्वर के उच्चारण में ह्रस्व की अपेक्षा अधिक समय लगता है।
हस्व और दीर्घ के भेद को अच्छी तरह समझना चाहिए। यदि आप ह्रस्व को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व बोलेंगे तो और का और अर्थ समझा जायगा। नीचे स्वरों के जोड़े दिये जा रहे हैं। एकान्त में इनके उच्चारण का अभ्यास कीजिए-
अ, आ ― अब, आब | कल, काल | जल, जाल | भर, भार
इ, ई – मिल, मील | किला, कीला | दिन, दीन | पिटना, पीटना
उ, ऊ ― सुना, सूना | पुरी, पूरी | चुकना, चूकना | घुस, धूस।
अंग्रेजी के शब्दों में आँ का उच्चारण किया जाता है; जैसे डॉक्टर, बॉल, हॉल, कॉलेज, ऑफिस में।
निम्नलिखित शब्दों में दीर्घ आ की मात्रा है। इसका ध्यान रहे – आगामी, आवश्यकता, आशीर्वाद, आहार, चाहिए, तात्कालिक, नाराज, प्राथमिक, बादाम, ब्राह्मण, भागीरथी, मालूम, व्यावहारिक, शारीरिक, साप्ता- हिक, सांसारिक ।
निम्नलिखित शब्दों में ह्रस्व इ की मात्रा का ध्यान रहे ― अतिथि, अभिनेता, बाइए, कठिनाई, कोटि, कालिदास, कि, क्योंकि, चाहिए, जैसा कि, तिलांजलि, निवासियों, क्षति, हानि, स्थिति, सम्पत्ति, शान्ति, संस्कृति, सृष्टि, परिचय, परिवार, नायिका, पाठिका, अध्यापिका, पारितोषिक, साहित्यिक, प्रतिनिधि, मालिन, धोबिन, मन्दिर, महिमा, रचयिता, लिखित, शनि, हिया, लड़कियाँ, दलिया, होशियार।
निम्नलिखित शब्दों में ई की दीर्घ मात्रा है ― आशीर्वाद, ईमानदार, ईसाई, तरीका, नीरस, नीरोग, पत्नी, पीताम्बर, प्रदर्शनी, बीमारी, महोना, शताब्दी, श्रीमती, समीक्षा, सूचीपत्र, स्त्री।
निम्नलिखित शब्दों में ह्रस्व उ की मात्रा है ― उँगली, उपर्युक्त, उबाना, उत्सुक, कुटुम्ब, कुआँ, गुरु, दुबारा, धुआं, पुरुष, मुकुन्द, निरुद्यम, रुई, बहुएँ, हिन्दुओं।
निम्नलिखित संस्कृत के शब्दों के अंत में भी हस्व उ की मात्रा है― अणु, आयु, इन्दु, ऋतु, कटु, जन्तु, तन्तु, धातु, पटु, पशु, प्रभु, बन्धु, बाहु, बिन्दु, भिक्षु, मधु, मृत्यु, वस्तु, वायु, शम्भु, शत्रु, सेतु, हेतु।
हिन्दी के अपने शब्दों के अन्त में अथवा विदेशी शब्दों के अंत में सदा दीर्घ ऊ होता है ― आँसू, आलू, उल्लू, कल्लू, काजू, काबू, चाकू, डाकू, झाड़, तम्बाकू, नींबू, बदबू, बहू, बाबू, बिच्छू, लट्ट, लड्डु, लागू, शुरू, हिन्दू।
र के साथ उ तथा ऊ की मात्राओं का ध्यान रहे—रु, रू।
संस्कृत में ह्रस्व और दीर्घ ऋ ॠ दोनों होते हैं। हिन्दी में संस्कृत के केवल वही शब्द प्रयुक्त होते हैं, जिसमें ह्रस्व ऋ है; जैसे – ऋण, ऋतु, कृष्ण, कृति, मातृभाषा, कृपा, तृप्त, दृश्य, घृणा, आकृष्ट, पृथ्वी, वृद्ध, सृष्टि आदि।
ए, ऐ, ओ, औ दीर्घ हैं। ए की अपेक्षा ऐ और ओ की अपेक्षा औ अधिक खुला है। निम्नलिखित जोड़ों का अर्थभेद स्पष्ट है ―
ए, ऐ ― वेद, वैद | मेला, मैला | बेल, बैल | सेर, सैर
ओ, ओ – कोड़ी, कौड़ी | खोलना, खौलना | बोना, बौना |सो, सौ ।
संस्कृत शब्दों में ऐ का उच्चारण अइ और औ का अउ होता है। उदाहरण - देव, वैभव, ऐतिहासिक, ऐश्वर्य, तेल, सैनिक, गौरव, भौतिक, मौन, यौवन, सौन्दर्य।
ऊपर जो स्वर गिनाये गये हैं, वे हिन्दी शब्दों में मूल या समान स्वर हैं। उनके उच्चारण में जबड़ा एक अवस्था में रहता है और एक श्वास बाहर निकलती है । अ आ इ ई उ ऊ को फिर-फिर बोलकर देखें। अब अई, आओ, आए बोलिए ।
संस्कृत के ऐ में वस्तुतः दो स्वर जुड़े हैं अ और इ, एवं ओ में भी दो स्वर जुड़े हैं अ और उ । इन्हें संयुक्त स्वर कहते हैं। इनके उच्चारण में जबड़ा हिलता है और एक से अधिक श्वास बाहर निकलते हैं। हिन्दी में संयुक्त स्वरों की संख्या अधिक है। उदाहरण-
अई ― नई, कई, मई | अए ― नए, गए
आई ― भाई, नाई, खाई | आऊ ― खाऊ, उड़ाऊ
आए — पाए, गाए, खाए | आओ ― खाओ, जाओ
इए – जिए, सिए, पिए | इआ ― जिया, पिया
इओ ― जियो, पियो, सियो [इनमें य श्रुतिमात्र है]
उआ ― हुआ, जुआरी | उई ― रुई, सुई
ओआ - खोआ | ओई – बोई, सोई
बोए ― सोए, पिरोए | ओओ - बोओ, सोओ
भइया, आइए, कउआ, पिरोइए में तीन-तीन स्वरों का संयोग हैं।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
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