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पाठ 1 'प्रार्थना' के प्रतियोगी प्रश्नोत्तर


Text ID: 53
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वैकल्पिक प्रश्न


प्रश्न 1― "वह शक्ति हमें दो दयानिधे" प्रार्थना के रचनाकार हैं―

(अ) मुरारीलाल शर्मा 'बालबन्धु'

(ब) भवानी प्रसाद मिश्र

(स) मन्नू भंडारी

(द) विष्णु खरे

उत्तर― मुरारीलाल शर्मा 'बालबन्धु'


प्रश्न 2― "वह शक्ति हमें दो दयानिधे" कविता में ईश्वर से मांगा गया है―

(अ) वैभव

(ब) धन

(स) सरल जीवन

(द) शत्रुओं पर विजय

उत्तर― सरल जीवन


प्रश्न 3― प्रार्थना "वह शक्ति हमें दो दयानिधे" में किससे दूर रहने की बात कही गई है?

(अ) छल

(ब) दंभ

(स) पाखंड

(द) उपरोक्त सभी

उत्तर― उपरोक्त सभी


प्रश्न 4― "वह शक्ति हमें दो दयानिधे" प्रार्थना में 'दयानिधे' शब्द का अर्थ है―

(अ) दया प्राप्त करने वाला।

(ब) दया के लिए पात्र व्यक्ति।

(स) दया की भीख।

(द) ईश्वर (दया के सागर)

उत्तर― ईश्वर (दया के सागर)


प्रश्न 5― 'सुधा' शब्द का पर्यायवाची नहीं है―

(अ) पीयूष

(ब) नीर

(स) अमिय

(द) अमृत

उत्तर― नीर


प्रश्न 6― 'शुचि' शब्द का आशय है―

(अ) प्रेम

(ब) सुख

(स) सच्चा

(द) पवित्र

उत्तर― पवित्र


एक शब्द में उत्तर वाले प्रश्न


प्रश्न  1― 'संताप' शब्द का क्या आशय है?

उत्तर― कष्ट।


प्रश्न  2― किन्हें तारने पर खुद तर जाते हैं?

उत्तर― अटके और भूले भटके।


प्रश्न  3― 'निशिदिन' शब्द से आशय है।

उत्तर― सदैव या हमेशा।


प्रश्न  4― अपने जीवन को किस प्रकार सफल बनाया जा सकता है?

उत्तर― दूसरों की सेवा और उपकार करके।


प्रश्न  5― हमारा जीवन कैसा होना चाहिए?

उत्तर― शुद्ध और सरल।


व्याकरण संबंधित प्रश्न


प्रश्न  1― इन शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए―

करम, परगट, कारन, हिरदय, पढना, दरशन, परभू, गुन, किरपा, कुढना

उत्तर― 

अशुद्ध शब्द ― शुद्ध शब्द

करम ― कर्म

परगट ― प्रकट

कारन ― कारण

हिरदय ― हृदय

पढना ― पढ़ना

दरशन ― दर्शन

परभू ― प्रभु

गुन ― गुण

किरपा ― कृपा

कुढना ― कुढ़ना


प्रश्न 2― निम्न के पर्यायवाची लिखिए―

शक्ति, दयानिधे, मार्ग, उपकार, दीन, संताप, छल, दंभ, द्वेष, पाखंड, शुचि, सुधा, मान

उत्तर―

शब्द ― पर्यायवाची शब्द

शक्ति ― बल, ताकत, सामर्थ्य।

दयानिधे ― ईश्वर, भगवान, दया के सागर।

मार्ग ― रास्ता, पथ, राह।

उपकार ― भलाई, हित।

दीन ― गरीब, हीन।

संताप ― दुख, कष्ट, परेशानी।

छल ― षड़यंत्र, प्रपंच।

दंभ ― घमंड, गर्व, अभिमान, शेखी।

द्वेष ― बैर, दुर्भावना।

पाखंड ― कपट , धोखाधड़ी , दिखावा।

शुचि ― शुद्ध, पवित्र, साफ।

सुधा ― अमृत, पीयूष, अमिय।

मान ― सम्मान, मर्यादा, इज्ज़त।


प्रार्थना एवं अनुवाद


वह शक्ति हमें दो दया निधे,

कर्त्तव्य मार्ग पर डट जाएँ।

पर सेवा पर उपकार में हम,

निज जीवन सफल बना जाएँ।।


हम दीन-दुखी निबलों-विकलों

के सेवक बन सताप हरे।

जो हैं अटके भूले-भटके,

उनको तारें खुद तर जाएँ।।


छल, दंभ, दवेष, पाखण्ड,

झूठ, अन्याय से निशिदिन दूर रहें।

जीवन हो शुद्ध सरल अपना,

शुचि प्रेंम-सुधा रस बरसाएँ ।।


निज आन, मान, मर्यादा का,

प्रभु! ध्यान रहे, अभिमान रहे।

जिस देश जाति में जन्म लिया,

बलिदान उसी पर हो जाएँ।।


अनुवाद


उक्त पंक्तियों में ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कवि कहते हैं कि हे ईश्वर! हमें वह ऊर्जा (शक्ति) प्रदान करो जिससे हम अपने कर्तव्य के मार्ग पर चलें अर्थात अपने कर्तव्य का निर्वहन करें। दूसरों की सेवा करें, उनकी भलाई करें। इस तरह अपने स्वयं के जीवन को सफल बना लें।


आगे कवि कहते हैं कि हे ईश्वर! हमें वह शक्ति प्रदान करो जिससे कि हम जो लोग दीन दुखी हैं, निःसहाय और परेशान हैं, उनके सेवक बन जाए और उनकी पीड़ा को दूर करें। जो लोग अपने जीवन मार्ग से भटक गए हैं और वे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं तो उन्हें हम तार दें अर्थात उनका उपकार कर दें। इस तरह हम स्वयं भी तर जाएंगे।


आगे कवि कहते हैं कि हे ईश्वर! हम छल कपट, घमंड, दूसरों से ईर्ष्या, ढोंग करने, झूठ बोलने तथा दूसरों के प्रति अन्याय करने जैसे अवगुणों से सदैव दूर रहें। हमारा जीवन पवित्र एवं सरल हो। हम सदैव ही दूसरों के प्रति अमृत रूपी प्रेंम की बरसात करें अर्थात दूसरों के साथ प्रेंम का व्यवहार करें।


अंत में कवि ने वर्णन किया है वे कहते हैं कि हे ईश्वर! हमें ऐसी शक्ति दो कि स्वयं की मान मर्यादा का सदैव ध्यान रहे और हमें उस पर गर्व रहे। हम जिस देश अर्थात भारत में और जिस जाति वंश में पैदा हुए हैं, उनकी रक्षा के हित अपने आपको न्यौछावर कर सकें।


टीप ― पाठ 1 प्रार्थना का संपूर्ण हल देखने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें।

पाठ 1 'प्रार्थना' के सम्पूर्ण अभ्यास व प्रश्नोत्तर

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
infosrf
R. F. Temre (Teacher)