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ह्रस्व एवं दीर्घ स्वर


Text ID: 8
13615

ह्रस्व एवं दीर्घ स्वर

मात्रा काल की दृष्टि से स्वर दो प्रकार के हैं —
 ह्रस्व (छोटे) या लघु और दीर्घ या गुरु (बड़े)।
अ, इ, उ, ऋ ह्रस्व हैं और आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, दीर्घ हैं।
दीर्घ स्वर के उच्चारण में ह्रस्व की अपेक्षा अधिक समय लगता है।
हस्व और दीर्घ के भेद को अच्छी तरह समझना चाहिए।
यदि आप ह्रस्व को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व बोलेंगे तो कुछ का कुछ ही अर्थ समझा जायगा। नीचे स्वरों के जोड़े दिये जा रहे हैं।
एकान्त में इनके उच्चारण का अभ्यास कीजिए —
अ, आ ― अब, आब | कल, काल | जल, जाल | भर, भार
इ, ई – मिल, मील | किला, कीला | दिन, दीन | पिटना, पीटना
उ, ऊ ― सुना, सूना | पुरी, पूरी | चुकना, चूकना | घुस, धूस।
अंग्रेजी के शब्दों में  का उच्चारण किया जाता है, जैसे— डॉक्टर, बॉल, हॉल, कॉलेज, ऑफिस में।

निम्नलिखित शब्दों में दीर्घ की मात्रा है।
इसका ध्यान रहे – आगामी, आवश्यकता, आशीर्वाद, आहार, चाहिए, तात्कालिक, नाराज, प्राथमिक, बादाम, ब्राह्मण, भागीरथी, मालूम, व्यावहारिक, शारीरिक, साप्ता- हिक, सांसारिक।

निम्नलिखित शब्दों में ह्रस्व इ की मात्रा है।
इनका ध्यान रहे― अतिथि, अभिनेता, बाइए, कठिनाई, कोटि, कालिदास, कि, क्योंकि, चाहिए, जैसा कि, तिलांजलि, निवासियों, क्षति, हानि, स्थिति, सम्पत्ति, शान्ति, संस्कृति, सृष्टि, परिचय, परिवार, नायिका, पाठिका, अध्यापिका, पारितोषिक, साहित्यिक, प्रतिनिधि, मालिन, धोबिन, मन्दिर, महिमा, रचयिता, लिखित, शनि, हिया, लड़कियाँ, दलिया, होशियार।

निम्नलिखित शब्दों में ई की दीर्घ मात्रा है ―
इनका ध्यान रहे― आशीर्वाद, ईमानदार, ईसाई, तरीका, नीरस, नीरोग, पत्नी, पीताम्बर, प्रदर्शनी, बीमारी, महोना, शताब्दी, श्रीमती, समीक्षा, सूचीपत्र, स्त्री।

निम्नलिखित शब्दों में ह्रस्व उ  की मात्रा है ―
इनका ध्यान रहे― उँगली, उपर्युक्त, उबाना, उत्सुक, कुटुम्ब, कुआँ, गुरु, दुबारा, धुआं, पुरुष, मुकुन्द, निरुद्यम, रुई, बहुएँ, हिन्दुओं।

निम्नलिखित संस्कृत के शब्दों के अंत में भी हस्व उ की मात्रा है―
इनका ध्यान रहे― अणु, आयु, इन्दु, ऋतु, कटु, जन्तु, तन्तु, धातु, पटु, पशु, प्रभु, बन्धु, बाहु, बिन्दु, भिक्षु, मधु, मृत्यु, वस्तु, वायु, शम्भु, शत्रु, सेतु, हेतु।

हिन्दी के अपने शब्दों के अन्त में अथवा विदेशी शब्दों के अंत में सदा दीर्घ ऊ होता है ―
इनका ध्यान रहे― आँसू, आलू, उल्लू, कल्लू, काजू, काबू, चाकू, डाकू, झाड़, तम्बाकू, नींबू, बदबू, बहू, बाबू, बिच्छू, लट्ट, लड्डु, लागू, शुरू, हिन्दू।

र के साथ उ तथा ऊ की मात्राओं का ध्यान रहे— रु, रू।

संस्कृत में ह्रस्व और दीर्घ ऋ ॠ दोनों होते हैं।
हिन्दी में संस्कृत के केवल वही शब्द प्रयुक्त होते हैं, जिसमें ह्रस्व है, जैसे – ऋण, ऋतु, कृष्ण, कृति, मातृभाषा, कृपा, तृप्त, दृश्य, घृणा, आकृष्ट, पृथ्वी, वृद्ध, सृष्टि आदि।

ए, ऐ, ओ, औ दीर्घ हैं। ए की अपेक्षा ऐ और ओ की अपेक्षा अधिक खुला है।
निम्नलिखित जोड़ों का अर्थभेद स्पष्ट है ―
ए, ऐ ― वेद, वैद | मेला, मैला | बेल, बैल | सेर, सैर
ओ, ओ – कोड़ी, कौड़ी | खोलना, खौलना | बोना, बौना। सो, सौ ।

संस्कृत शब्दों में ऐ का उच्चारण अइ और औ का अउ होता है।
उदाहरण — देव, वैभव, ऐतिहासिक, ऐश्वर्य, तेल, सैनिक, गौरव, भौतिक, मौन, यौवन, सौन्दर्य।

ऊपर जो स्वर गिनाये गये हैं, वे हिन्दी शब्दों में मूल या समान स्वर हैं। उनके उच्चारण में जबड़ा एक अवस्था में रहता है और एक श्वास बाहर निकलती है।
अ आ इ ई उ ऊ को फिर-फिर बोलकर देखें। अब अई, आओ, आए बोलिए।

संस्कृत के में वस्तुतः दो स्वर जुड़े हैं और , एवं में भी दो स्वर जुड़े हैं और । इन्हें संयुक्त स्वर कहते हैं। इनके उच्चारण में जबड़ा हिलता है और एक से अधिक श्वास बाहर निकलते हैं। हिन्दी में संयुक्त स्वरों की संख्या अधिक है।
उदाहरण—
अई ― नई, कई, मई | अए ― नए, गए
आई ― भाई, नाई, खाई | आऊ ― खाऊ, उड़ाऊ
आए — पाए, गाए, खाए | आओ ― खाओ, जाओ
इए – जिए, सिए, पिए | इआ ― जिया, पिया
इओ ― जियो, पियो, सियो [इनमें य श्रुतिमात्र है]
उआ ― हुआ, जुआरी | उई ― रुई, सुई
ओआ — खोआ | ओई – बोई, सोई
बोए ― सोए, पिरोए | ओओ - बोओ, सोओ
भइया, आइए, कउआ, पिरोइए में तीन-तीन स्वरों का संयोग हैं।

उच्चारण स्थान की दृष्टि से स्वरों के निम्नलिखित भेद होंगे―
कण्ठ्य (गले से ) ― अ, आ
तालव्य (तालु से ) ― इ, ई
ओष्ट्य (होंठों से ) ― उ, ऊ
मूर्धन्य (मूर्धा से या तालु के मध्य से) ―
कण्ठतालव्य (कंठ और तालु से) ― ए, ऐ
कण्ठोष्ट्य (कंठ और होंठों से) ― ओ, ओ

जीभ विभिन्न भागों के उठाव के आधार पर― जीभ का कौन-सा भाग उठता है, इस बात को देखा जाय, तो स्वरों का वर्गीकरण निम्नलिखित ढंग से होगा―
अग्र स्वर— जीभ का अगला भाग थोड़ा-सा उठता है - इ, ई, ए, ऐ।
पश्चस्वर― जीभ का पिछला भाग थोड़ा-सा उठता है— उ, ऊ, ओ, औ।
मध्य स्वर― जीभ का मध्य भाग थोड़ा-सा उठता है ― अ, आ

विवृत (खुले) स्वर― जिन स्वरों के उच्चारण में मुँह खुला रहता है, उन्हें विवृत (खुले) स्वर कहते हैं। जैसे ― आ।
संवृत स्वर― जिनके उच्चारण में मुँह जरा भिचा रहता है। जैसे― इ, ई, उ, ऊ, इन्हें संवृत स्वर कहते हैं।
अर्धविवृत एवं अर्धसंवृत― उक्त दो के बीच में दो स्थितियाँ अर्धविवृत एवं अर्धसंवृत हैं—
अर्धविवृत― अ, ऐ, औ एवं
अर्धसंवृत― ए, ओ।
ओंठों के आकार के अनुसार― ओंठों के आकार के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं―
वृत्ताकार या गोलाकार― उ, ऊ, ओ ओ और
अवृत्ताकार― जब ओंठ फैले रहते हैं— इ, ई, ए, ऐ, अ, आ
मात्रा परिवर्तन― शब्द का विस्तार होने पर बहुत से स्वरों की मात्रा में परिवर्तन हो जाता है।
उदाहरण―
आधा से ― अघमरा, अधपका, अधेली, अधरंग।
आम से ― अमचूर, अमियाँ, अमावट।
एक से ― इकट्ठा, इकहरा, इकलौता, इकतालीस।
खेती से ― खेतिहर।
खेल से ― खिलाड़ी, खिलौना, खिलाना।
घाट से ― पनघट घटवार।
घोड़ा से ― घुड़दौड़, घुड़चढ़ा, घुड़साल, घुड़सवार।
छोटा से ― छुटपन, छुटभैया।
छै से ― छटांक, छब्बीस, छत्तीस, छप्पन 
जेठ से ― जिठानी, जिठौत।
ढीठ से ― ढिठाई।
ढीला से ― ढिलाई।
बोना से ― बुवाई।
तीन से ― तिपाई, तिनपतिया, तिक्का, तिबारा।
दो से ― दुबारा, दुपट्टा, दुनाली।
नोक से ― नुकीला ।
पाँच से ― पंचायत, पचासी, पचपन, पंसेरी।
बाट से ― बटखरा, बटमार, बटाऊ।
बूढ़ा से ― बुढ़िया, बुढ़ापा, बुढ़ाना।
मीठा से ― मिठास, मिठबोला।
रानी से ― रानियाँ।
लड़की से ― लड़कियाँ।
खिड़की से ― खिड़कियाँ।
लाख से ― लखपती।
लुट से ― लुटेरा।
सात से ― सतखंडा, सतधारा, सत्तावन, सतलड़ा।
साठ से ― सठियाना, इकसठ।
सीखना से ― सिखाना, सिखलाई।
सोना से ― सुनहरा।
हाथ से ― हथकंडे, हथौड़ा, हथकड़ी।
हिन्दू से ― हिन्दी, हिन्दुओं।

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
Thank you.
infosrf
R. F. Temre (Teacher)