☆ काया हमरी देहरी, चेतन हमरो देव।
☆ पड्यो जीव भ्रम जाल मा, अखिन अखिन को सेव।।
हिन्दी अनुवाद ― उक्त दोहे में कवि आध्यात्मिकता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह शरीर वह घर है जिसमें चेतना रूपी आत्मा देवता के रूप में विराजमान है, किंतु प्राणी भ्रमित होकर माया के जाल में ऐसा पड़ा हुआ है कि उसे वास्तविकता का ज्ञान ही नहीं है। वह सुख के लालच में अधिक से अधिक सांसारिक चीजों के संग्रह में लगा हुआ है।
अंग्रेजी अनुवाद ― In the above couplet, the poet describes spirituality and says that this body is the house in which the soul in the form of consciousness resides as a deity, but the creature is so confused and trapped in the net of Maya that he has no knowledge of reality. In the greed for happiness, he is engaged in collecting more and more worldly things.
☆ अखिन अखिन को फेर मा, मानव ला अभिमान।
☆ दिवस चार को पेखना, जीवन ला पहिचान।।
हिन्दी अनुवाद ― उक्त दोहे में कवि मानव मात्र को वास्तविकता का ज्ञान कराते हुए कहते हैं कि व्यक्ति और-और अर्थात अधिक-अधिक (धन-दौलत) के चक्कर में अभिमान से ग्रस्त हो चुका है। किंतु यह तो चार दिन की जिंदगी है, मनुष्य को अपने जीवन के उद्देश्य को पहचान लेना चाहिए।
अंग्रेजी अनुवाद ― In the above couplet, the poet makes the human beings aware of the reality and says that man has become arrogant in the pursuit of more and more i.e. more and more (wealth). But this is a short life, man should recognize the purpose of his life.
सौजन्य से – श्री एल डी. हनवत (दोहा रचनाकार) उगली, सिवनी मध्यप्रदेश।
हिन्दी व अंग्रेजी अनुवादक – श्री आर. एफ. टेमरे मेहरा पिपरिया, सिवनी मध्यप्रदेश।